कई दशकों से चीन के साथ भारत की व्यापार नीति जरूरत से ज्यादा उदार रही है। जहां एक ओर चीन भारत को हर साल करीब 60 अरब डॉलर का निर्यात करता है, तो वहीं चीन की ओर से मात्र 10 अरब डॉलर की ही खरीदारी की जाती है।
बीते दिनों अमेरिका ने चीनी उत्पादों पर आयात शुल्क को बढ़ा दिया था, जिसके बाद चीन ने पलटवार करते हुए अमेरिका से आयात होने वाले कई प्रमुख उत्पादों पर आयात शुल्क में बढ़ोत्तरी कर अपने इरादे साफ कर दिए थे। जाहिर है चीन और अमेरिका के बीच छिड़े इस व्यापार युद्ध का फायदा कहीं न कहीं भारत को हो सकता है। अर्थ-विशेषज्ञों की मानें तो चीन और भारत के बीच बढ़ते व्यापारिक असंतुलन को कम करने का ये सबसे उपयुक्त समय है, लेकिन फिलहाल अंतर्राष्ट्रीय बाजार में भारत से निर्यात होने वाले ऐसे कई उत्पाद हैं, जिनकी खरीदारी चीन नहीं करता। इसके चलते चीन के साथ भारत का व्यापार घाटा लगातार बढ़ता जा रहा है।
दुनियाभर में हर साल भारतीय चावल की मांग होती है।
ईरान सहित कई अरब देशों को भारत बासमती और गैर-बासमती चावल का निर्यात करता है। चावल के निर्यात से भारत को करीब 5.3 अरब डॉलर यानी करीब 3 खरब 33 अरब रुपये का राजस्व प्राप्त होता है, लेकिन भारत से चावल के आयात पर चीन ने पाबंदी लगा रखी है। यह अलग बात है कि चीन अर्तराष्ट्रीय बाजार से करीब 99 अरब रुपये के चावल की खरीददारी करता है।
प्रतिवर्ष भारत से लगभग 2 से 3 खरब रुपये की कीमत की भैसों के मांस का निर्यात होता है, लेकिन चीन भारत से भैंसो के मांस नहीं खरीदता। हालांकि, विदेशों से हर साल चीन 2.45 अरब डॉलर की कीमत का भैसों का मांस मंगवाता है।
भारत से हर साल करीब 7 अरब 29 करोड़ रुपये की दवाइंया निर्यात की जाती है। वहीं, चीन में भी हर साल 41 अरब 63 करोड़ की दवाइंयों का आयात होता है, लेकिन फिर भी चीन भारत से दवाइंयों की खरीदारी नहीं करता।
चीन हर साल करीब 58 अरब रुपये के एल्युमिनियम का आयात करता है, जिसमें से केवल 1 करोड़ 30 लाख रुपये की खरीद भारत से होती है। वहीं, अंतर्राष्ट्रीय बाजार में भारत से प्रतिवर्ष करीब 8 अरब रुपये के एल्युमिनियम एलॉय का निर्यात किया जाता है।
चीन के इस रवैये के चलते भारत का व्यापार घाटा बढ़ता जा रहा है।
चीन द्वारा अमेरिका के उत्पादों पर लगाए गए नए आयात शुल्क के कारण वहां के बाजार में अमेरिकी वस्तुओं की कीमतों में बढ़ोत्तरी की संभावना बनी हुई है। इसमें से कई वस्तुएं भारत चीन को निर्यात करता है। माना जा रहा है कि भारतीय वस्तुएं चीन के बाजारों में अमेरिकी वस्तुओं के मुकाबले सस्ती होंगी, जिसके चलते चीन में भारत का निर्यात बढ़ सकता है।