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स्वच्छ भारत के सपने को पूरा करने में इन आम लोगों ने जो योगदान दिया है वो वाकई सराहनीय है

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भारत के गांव व कस्बों के अलावा महानगरों की झुग्गियों में शौचालय न होना बहुत बड़ी समस्या है। इसी गंभीर समस्या के मद्देनज़र रखते हुए मोदी सरकार ने स्वच्छ भारत शौचालय निर्माण योजना का आगाज़ किया। वैसे सरकार के अलावा कई एनजीओ भी इस काम में जुटे हैं। इतना ही नहीं कई लोगों ने व्यक्तिगत स्तर पर पहल करके अपने गांव-कस्बों की सफाई के लिए शौचालय निर्माण करवाया और सरकार के स्वच्छ भारत अभियान को आगे बढ़ाने में मदद की है। चलिए आपको मिलवाते हैं ऐसे ही कुछ लोगों से।

105 साल की कुंवर बाई

 

छत्तीसगढ़ के धमतरी की रहने वाली कुंवर बाई को अपने नित्यकर्म के लिए रोजाना घर से काफी दूर जाना पड़ता था। करीब 100 साल तक उनका यही रूटीन रहा, लेकिन अब 105 साल की उम्र में कुंवर बाई ने अपने गांव को खुले में शौच से मुक्त करा दिया है। इस साल की शुरुआत में कुंवर बाई को अपने इस काम के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से सम्मान मिल जुका है और उन्हें स्वच्छ भारत अभियान का मैस्कॉट भी चुना गया। कुंवर बाई कहती हैं-

“मैं अपनी पूरी ज़िंदगी खुले में ही शौच के लिए मजबूर थी, इसके लिए मुझे जंगल में जाना पड़ता था। बस पिछले एक-डेढ साल से स्थिति बदली और शौचालय का निर्माण हुआ। मैं नहीं चाहती कि जिन परिस्थितियों से मैं गुज़री हूं, किसी और को गुज़रना पड़े।”

 

मोनीद्रिता चैटर्जी

 

12 साल की मोनिद्रिता निश्चय ही लोगों के लिए किसी प्रेरणा से कम नहीं है। जमेश्दपुर की रहने वाली मोनिद्रिता भारत को खुले में शौच से मुक्ति दिलाने की दिशा में लगातार प्रयास कर रही हैं और इसी का नतीज़ा है कि उनका शहर जमेश्दपुर स्वच्छ शहरों की श्रेणी में आ गया।

2016 में मोनिद्रिता ने 24,000 रुपए जमा किए और केंद्रधी गांव में बच्चों के लिए दो शौचालयों का निर्माण करवाया। इसके अलावा उन्होंने हल्दुबानी गांव में भी दो शौचलाय बनवाएं। मोनीद्रिता शौचालय बनाने के लिए बेकार की प्लास्टिक की बोतलों का इस्तेमाल करती हैं। हाल ही में उन्होंने गुरुर बासा गांव में 2 प्लास्टिक शौचालय बनाएं।

सुशीला खुरकुटे

 

सुशीला के प्रयासों को वाकई सलाम करना चाहिए, प्रेग्नेंट होने के बावजूद उन्होंने घर के बाहर खुद के लिए शौचालय बनाने के लिए गड्ढ़ा खोदा। सुशीला का कहना है कि जब मैं अपने लिए बदलाव ला सकती हूं, तो आप भी ये बदलाव ला सकते हैं। सुशीला अपने गांव को भी अब खुले में शौच से मुक्त कराना चाहती है।

 

सीटी बहनें

 

उड़ीसा के गंजम जिले की करीब 30 महिलाएं मिलकर मोदी जी के स्वच्छ भारत के सपनों को पूरा करने में जुटी है और वो भी बहुत अनोखे तरीके से। ये महिलाएं सीटी बजाकर लोगों को घर में शौचालय बनवाने की अहमियत समझाती हैं। इतना ही नहीं खुले में शौच से बीमारियों के खतरे के बारे में भी आगाह करवाती हैं। ये सुबह 4 से 6 बजे तक गश्त लगाकर लोगों को खुले में शौच से रोकती हैं।

 

सरपंच काजल रॉय

 

छत्तीसगढ़ जिले का साना गांव बहुत भाग्यशाली है, जो उसे काजल रॉय जैसी सरपंच मिली। काजल ने अपने गहने गिरवी रखकर 87,000 रुपए जुटाएं और इससे गांव में करीब 100 शौचालय बनवाएं। उनकी इसी पहल का नतीजा है कि इसी साल मार्च में साना गांव को खुले में शौच से मुक्ती मिल गई।


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