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भगत सिंह के साथ बम फेंकने वाले बटुकेश्वर दत्त को वह सम्मान नहीं मिला जिसके वह हकदार थे

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शहीद-ए-आजम भगत सिंह के साथ नेशनल असेम्बली में बम फेंकने वाले क्रान्तिकारी बटुकेश्वर दत्त को वह सम्मान नहीं मिला, जिसके वह हकदार थे। दत्त का जीवन भारत की स्वतंत्रता के बाद भी संघर्ष की गाथा बना रहा। बटुकेश्वर दत्त की न केवल जिन्दगी, बल्कि उनकी स्मृति की भी आजाद भारत में घोर उपेक्षा हुई।

इस बात का खुलासा, नेशनल बुक ट्रस्ट द्वारा प्रकाशित किताब “बटुकेश्वर दत्त, भगत सिंह के सहयोगी” में किया गया है। अनिल वर्मा द्वारा लिखी गयी यह संभवत: पहली ऐसी किताब है, जो उनके जीवन का प्रामाणिक दस्तावेज होने के साथ-साथ स्वतंत्रता संघर्ष और आजादी के बाद जीवन संघर्ष को उजागर करती है।

इस पुस्तक के मुताबिक, भारत की आजादी के लिए अपनी जवानी जेल में खपाने वाले दत्त ने आजाद भारत में जिन्दगी बिताने के लिए बड़ा संघर्ष किया।

भारत जब आजाद हुआ तो बटुकेश्वर दत्त को भी जेल से छोड़ दिया गया। उनके सामने जीवनयापन की बड़ी समस्या थी। उन्होंने एक सिगरेट कंपनी में एजेन्ट की नौकरी कर ली। बाद में बिस्कुट बनाने का एक छोटा कारखाना खोला, लेकिन नुकसान होने की वजह से इसे बंद कर देना पड़ा।

बटुकेश्वर दत्त को 1964 में अचानक बीमार होने के बाद गंभीर हालत में पटना के सरकारी अस्पताल में भर्ती कराया गया।

इस पर उनके मित्र चमनलाल आजाद ने एक लेख में लिखाः

“क्या दत्त जैसे क्रांतिकारी को भारत में जन्म लेना चाहिए, परमात्मा ने इतने महान शूरवीर को हमारे देश में जन्म देकर भारी गलती की है। खेद की बात है कि जिस व्यक्ति ने देश को स्वतंत्र कराने के लिए प्राणों की बाजी लगा दी और जो फांसी से बाल-बाल बच गया, वह आज नितांत दयनीय स्थिति में अस्पताल में पड़ा एडियां रगड़ रहा है और उसे कोई पूछने वाला नहीं है।”

अखबारों में इस लेख के छपने के बाद, सत्ता में बैठे लोगों के कानों पर जूं रेंगी। पंजाब सरकार उनकी मदद के लिए सामने आई। बिहार सरकार भी हरकत में आई, लेकिन तब तक बटुकेश्वर की हालत काफी बिगड़ चुकी थी। उन्हें 22 नवंबर 1964 को उन्हें दिल्ली लाया गया।

दिल्ली पहुंचने पर उन्होंने पत्रकारों से कहा था:

“मैं सपने में भी नहीं सोच सकता था कि उस दिल्ली में मैनें जहां बम डाला था, वहां एक अपाहिज की तरह स्ट्रेचर पर लादा जाऊंगा।”

उन्हें सफदरजंग अस्पताल में भर्ती किया गया। फिर बाद में एम्स में। वहां जांच में पता चला कि वह कैन्सर से पीड़ित थे और उनकी जिन्दगी के कुछ ही दिन शेष बचे थे। यहां उन्होंने अपनी अंतिम इच्छा जताते हुए कहा कि उनका दाह संस्कार भी उनके मित्र भगत सिंह की समाधि के बगल में किया जाए।

20 जुलाई 1965 की रात एक बजकर 50 मिनट पर बटुकेश्वर दत्त का निधन हो गया। उनका अंतिम संस्कार उनकी इच्छा के अनुसार, भारत-पाक सीमा के करीब हुसैनीवाला में भगत सिंह, राजगुरू और सुखदेव की समाधि के निकट किया गया।


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